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सही परिभाषा



इस्तिग़ना का मतलब यह नहीं है कि इंसान केवल धन और दौलत से बे-ज़ार हो जाए। क्योंकि धन और दौलत से कोई भी इंसान अपनी इच्छाओं से मुक्त नहीं हो सकता। जीवन की आवश्यकताएँ और संबंधित व्यक्तियों की देखभाल एक अनिवार्य कार्य है और इसका संबंध 'हुक़ूक़-उल-इबाद' (मानवाधिकार) से है। इस्तिग़ना का अर्थ यह है कि इंसान जो कुछ भी करता है, उस कार्य में परमेश्वर की रज़ा (खुश़ी) हो, और इस मानसिकता या कार्य से परमेश्वर की सृष्टि (श्रष्टि) को किसी भी प्रकार से नुकसान पहुंचे। हर व्यक्ति स्वयं खुश रहे और मानवता के लिए कोई दुःख और तकलीफ का कारण बने। यह आवश्यक है कि व्यक्ति के मन में यह बात स्थिर हो कि ब्रह्मांड में मौजूद हर चीज़ का मालिक और नियंत्रक परमेश्वर है। परमेश्वर ही है जिसने पृथ्वी बनाई, परमेश्वर ही है जिसने बीज बनाया, परमेश्वर ही है जिसने पृथ्वी और बीज को यह क्षमता दी कि बीज पेड़ में बदल जाए और पृथ्वी उसे अपनी गोदी में पाला-पोसा करे। पानी पेड़ों की नसों में खून की तरह दौड़े, हवा रोशनी बनकर पेड़ के अंदर काम करने वाले रंगों की कमी को पूरा करे। धूप पेड़ के अधपके फल को पकाने के लिए निरंतर संबंध और नियम के साथ पेड़ से जुड़ी रहे। चाँदनी फलों में मिठास पैदा करे। पृथ्वी का यह कर्तव्य है कि वह ऐसे पेड़ उगाए जो इंसान की जरूरतों को पूरा करें। पेड़ों का यह कर्तव्य है कि वे ऐसे पत्ते और फल उगाएँ जिनसे सृष्टि की आवश्यकता मौसम के अनुसार पूरी होती रहे।

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कलंदर शऊर(Qalandar Shaoor)

ख्वाजा शम्सुद्दीन अजीमी

कलंदर शऊर

 

अच्छी है बुरी है, दुनिया (dahr) से शिकायत मत कर।
जो कुछ गुज़र गया, उसे याद मत कर।
तुझे दो-चार सांसों (nafas) की उम्र मिली है,
इन दो-चार सांसों  (nafas)  की उम्र को व्यर्थ मत कर।

 

(क़लंदर बाबा औलिया)