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गुप्तित खजाना



स्वर्गीय शास्त्रों (आधिकारिक किताबों) के दृष्टिकोण से, जब हम काइनात की तख्लीक (सृष्टि) पर विचार करते हैं, तो यह ज्ञात होता है कि हम मखलूक (सृष्टी) हैं और परमेश्वर हमारा खालिक (सृष्टिकर्ता) है। खालिक ने जब चाहा, "कुन" (हो) का आदेश देकर काइनात को अस्तित्व में ला दिया। यह सवाल उठता है कि खालिक ने ऐसा क्यों चाहा और खालिक की इच्छा पहले से मौजूद थी या नहीं? यदि खालिक का चाहना पहले से अस्तित्व में था, तो वह कहाँ था और खालिक ने काइनात को क्यों बनाया? इस प्रश्न का उत्तर खालिक स्वयं देता है, जहां वह कहता है, "मैं गुप्तित खजाना था, और मैंने मखलूक को अपनी मोहब्बत से इसलिए पैदा किया कि मैं पहचाना जा सकूं।"

मखलूक के अस्तित्व और उसकी उपस्थिति के बारे में खालिक का कहना है, "मैंने मखलूक को अपनी सिफात (गुणों) पर उत्पन्न किया।" यह ज्ञात सत्य है कि ज़ात (स्वरूप) और सिफात (गुण) को अलग नहीं किया जा सकता। सिफात हमेशा ज़ात के अंदर मौजूद रहती हैं और इन सिफात के माध्यम से ही ज़ात का परिचय प्राप्त होता है।


 

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कलंदर शऊर(Qalandar Shaoor)

ख्वाजा शम्सुद्दीन अजीमी

कलंदर शऊर

 

अच्छी है बुरी है, दुनिया (dahr) से शिकायत मत कर।
जो कुछ गुज़र गया, उसे याद मत कर।
तुझे दो-चार सांसों (nafas) की उम्र मिली है,
इन दो-चार सांसों  (nafas)  की उम्र को व्यर्थ मत कर।

 

(क़लंदर बाबा औलिया)