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मनुष्य केवल मांस, त्वचा और हड्डियों के ढांचे का नाम नहीं है। मनुष्य के साथ एक और दिव्य
रोशनी से निर्मित शरीर होता है, जिसे कलंदर बाबा औलियाؒ ने नस्मा (AURA) कहा है।
नस्मा या आभामंडल छह बिंदुओं या चक्रों से निर्मित होता है। इन चक्रों का नाम
अख़फ़ा, ख़फ़ी, सिर, आत्मा, क़ल्ब और नफ़्स है। इन छह चक्रों से तीन
प्रकार की आत्माओं का निर्माण होता है। इन आत्माओं के नाम आत्मा-ए-हैवानी, आत्मा-ए-मानवी और आत्मा-ए-आज़म हैं।
छह बिंदुओं, छह चक्रों या दिव्य रोशनी के दीपकों को आध्यात्मिकता में चक्र या जनरेटर
कहा जाता है। प्रत्येक दो चक्रों से एक आत्मा का निर्माण होता है।
चक्र-ए-नफ्सी और
चक्र-ए-हृदय से आत्मा-ए-हैवानी (पशु आत्मा) बनती है।
चक्र-ए-गुप्त और
चक्र-ए-आत्मिक से आत्मा-ए-मानवी (मानव आत्मा) का निर्माण होता है।
चक्र-ए-सूक्ष्म और
चक्र-ए-अत्यंत सूक्ष्म से आत्मा-ए-आज़म (महान आत्मा) की संरचना होती है।
चक्र नफसी और चक्र क़लबी
से बनने वाली पशु आत्मा पर हमेशा पीला रंग प्रबल रहता है। चक्र रुही और चक्र सिरी
से मानव आत्मा पर हरा रंग का प्रभाव होता है। और, चक्र खुफ़ी और चक्र अख़फ़ी से मिलकर बनने वाली आत्मा-ए-आज़म पर नीला रंग
प्रबल होता है। जैसे-जैसे पीले रंग का प्रभाव बढ़ता है, उसी
अनुपात में व्यक्ति पर संसारिक इंद्रियों का प्रभाव भी अधिक होता जाता है। आत्मिक
साधना इस कारण कराई जाती है ताकि व्यक्ति से पीले रंग का प्रभाव कम हो जाए। पीले
रंग का प्रभाव कम होने से व्यक्ति का मानसिक ध्यान हरी आभा की ओर स्थानांतरित हो
जाता है। ये हरी आभाएँ उसे मानसिक शांति प्रदान करती हैं और मानसिक एकाग्रता में
सहायक होती हैं। जब मानसिक एकाग्रता हरी आभाओं पर स्थापित हो जाती है, तो मन नीली आभाओं में परिवर्तित हो जाता है।
ख्वाजा शम्सुद्दीन अजीमी
कलंदर शऊर
अच्छी है बुरी है, दुनिया (dahr) से शिकायत मत कर।
जो कुछ गुज़र गया, उसे याद मत कर।
तुझे दो-चार सांसों (nafas) की उम्र मिली है,
इन दो-चार सांसों (nafas) की उम्र को व्यर्थ मत कर।
(क़लंदर बाबा औलिया)