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एक प्रकार की चींटियाँ सैनिकों जैसी होती हैं, जो अधिकतर घुमंतू रहती हैं और इनके तरीके सैनिकों की जीवनशैली से मिलते-जुलते होते हैं। ये चींटियाँ एक काफ़िले के रूप में यात्रा करती हैं, जिसमें रानी अपने सहचरों के मध्य होती है। यह काफ़िला दिनभर गतिमान रहता है, और जो कीड़ा इनके मार्ग में रुकावट डालता है, उसे रक्षात्मक चींटियाँ नष्ट कर देती हैं। रात के समय ये एक पेड़ पर खंभे के रूप में इकट्ठी हो जाती हैं, जहाँ रानी और उसके सहचरी मध्य में होते हैं। इनकी इकट्ठा होने की प्रक्रिया इतनी दिलचस्प होती है कि वे मध्य में रास्ता छोड़ देती हैं, ताकि हवा का संचरण हो सके, जो उनके श्वसन (respiration) के वैज्ञानिक सिद्धांतों से अवगत होने का संकेत है।
ख्वाजा शम्सुद्दीन अजीमी
कलंदर शऊर
अच्छी है बुरी है, दुनिया (dahr) से शिकायत मत कर।
जो कुछ गुज़र गया, उसे याद मत कर।
तुझे दो-चार सांसों (nafas) की उम्र मिली है,
इन दो-चार सांसों (nafas) की उम्र को व्यर्थ मत कर।
(क़लंदर बाबा औलिया)