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सृजनात्मक सिद्धांतों का ज्ञान रखने वाले यह जानते हैं कि ब्रह्मांड और ब्रह्मांड के भीतर सभी अभिव्यक्तियों की रचना द्वैत पर आधारित है। इस तथ्य के आलोक में सांस के दो पहलू निश्चित किए गए हैं। एक पहलू यह है कि व्यक्ति भीतर सांस लेता है और दूसरा पहलू यह है कि सांस बाहर निकाली जाती है। गहराई से भीतर सांस लेना आरोही गति है और सांस का बाहर निकलना अवरोही गति है। आरोहण उस गति को कहा जाता है जिसमें सृष्टि का संबंध सीधे अपने स्रष्टा के साथ स्थापित होता है, और अवरोहण उस गति को कहा जाता है जिसमें व्यक्ति अदृश्य से दूर हो जाता है और समय और स्थान की पकड़ उसके ऊपर हावी हो जाती है।
जब कुछ भी अस्तित्व में नहीं था, केवल परमेश्वर था। परमेश्वर ने चाहा और संपूर्ण ब्रह्मांड रच दिया गया। यह सिद्धांत बना कि सृष्टि की बुनियाद परमेश्वर की इच्छा है। परमेश्वर की इच्छा परमेश्वर का चेतन मन है, अर्थात ब्रह्मांड और हमारा मूल अस्तित्व परमेश्वर के चेतन मन में है। यह नियम है कि किसी भी वस्तु का अपने मूल से संबंध विच्छिन्न न हो तो वह वस्तु अस्थिर नहीं होती। यह संबंध प्रकट रूपों में आरोही गति से स्थापित होता है और आरोही गति भीतर सांस लेने की प्रक्रिया है। इसके विपरीत हमारा स्थूल भौतिक अस्तित्व अवरोही गति पर आधारित होता है।
ख्वाजा शम्सुद्दीन अजीमी
कलंदर शऊर
अच्छी है बुरी है, दुनिया (dahr) से शिकायत मत कर।
जो कुछ गुज़र गया, उसे याद मत कर।
तुझे दो-चार सांसों (nafas) की उम्र मिली है,
इन दो-चार सांसों (nafas) की उम्र को व्यर्थ मत कर।
(क़लंदर बाबा औलिया)