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स्वप्न और ध्यान में मौलिक अंतर
यह है कि स्वप्न की अवस्था में मस्तिष्क (चेतना) शारीरिक अंगों की उपेक्षा करते
हुए उन्हें निष्क्रिय कर देता है, जबकि ध्यान की अवस्था में
चेतना शारीरिक अंगों के साथ सक्रिय संपर्क बनाए रखती है। ध्यान की प्रक्रिया में
साधक की "आंतरिक दृष्टि" (जीवात्मा की दृष्टि) जागृत रहती है, और वह समय एवं स्थान (काल और देश) की सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए भी
शारीरिक अनुभवों से परिचित रहता है। ध्यान को स्वप्न की प्रारंभिक अवस्था के रूप
में देखा जा सकता है। यह वह स्थिति है जिसमें साधक पर नींद का प्रभाव नहीं होता और
वह पूर्णतया जागृत रहते हुए अपने मानसिक और आध्यात्मिक आयामों का अनुभव करता है।
ख्वाजा शम्सुद्दीन अजीमी
कलंदर शऊर
अच्छी है बुरी है, दुनिया (dahr) से शिकायत मत कर।
जो कुछ गुज़र गया, उसे याद मत कर।
तुझे दो-चार सांसों (nafas) की उम्र मिली है,
इन दो-चार सांसों (nafas) की उम्र को व्यर्थ मत कर।
(क़लंदर बाबा औलिया)