Topics
शुतुरमुर्ग में बुद्धिमत्ता और समझ
की पहचान इस प्रक्रिया से की जा सकती है, जिसमें वह अपने अंडों को तीन श्रेणियों में विभाजित करता है: कुछ अंडों को वह रेत
में दबा देता है, कुछ को
धूप में छोड़ देता है, और शेष
अंडों को अपने शरीर के नीचे सेंकता है। जब अंडों से शिशु बाहर आते हैं,
तो वह धूप में रखे गए अंडों से एक तरल पदार्थ निकालता है और
शिशुओं को पिलाता है। इस पोषक तत्व के सेवन से शिशुओं के विकास की गति में उल्लेखनीय
वृद्धि होती है। जब शिशु कुछ बड़े हो जाते हैं, तो वह रेत में दबाए गए अंडों को तोड़कर थोड़ी देर के लिए छोड़ देता है। रेत में
दबाए जाने और टूटने के बाद इन अंडों पर सीधे धूप के संपर्क से कीड़े-मकोड़े उत्पन्न
हो जाते हैं, जो शिशुओं
के आहार का प्रमुख स्रोत बन जाते हैं। जैसे-जैसे शिशुओं का विकास होता है,
वे घास और पौधों को अपनी आहार सामग्री बना लेते हैं,
और इस प्रकार वे किशोरावस्था में प्रवेश करते हैं। शुतुरमुर्ग
का अंडों का इस प्रकार से प्रबंधन करना किसी भी दृष्टि से बुद्धिमत्ता और विवेक का
उत्कृष्ट उदाहरण है।
ख्वाजा शम्सुद्दीन अजीमी
कलंदर शऊर
अच्छी है बुरी है, दुनिया (dahr) से शिकायत मत कर।
जो कुछ गुज़र गया, उसे याद मत कर।
तुझे दो-चार सांसों (nafas) की उम्र मिली है,
इन दो-चार सांसों (nafas) की उम्र को व्यर्थ मत कर।
(क़लंदर बाबा औलिया)