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एक दिन वाकी शरीफ के जंगल (भारत) में कुछ लोगों के साथ पहाड़ पर चढ़ते हुए नाना ताजुद्दीन नागपुरी (र.अ.) गए। नाना (र.अ.) मुस्कराते हुए कहने लगे, 'जो शेर से भयभीत हो, वह जा सकता है। मैं यहाँ थोड़ी देर विश्राम करूंगा, मुझे विश्वास है कि शेर अवश्य आएगा। जितनी देर रुकना हो, वह उनकी इच्छा है। आप लोग जाइए, भोजन करें, पियें और आनंद लें।' कुछ लोग इधर-उधर छिप गए और कुछ दूर चले गए।
गर्मी का मौसम था, वृक्षों की छांव और ठंडी हवा खुमार उत्पन्न कर रही थी। नाना (र.अ.) अब मोटी घास पर लेटे हुए थे, उनकी आँखें बंद थीं, और वातावरण में पूर्ण शांति व्याप्त थी।
कुछ क्षणों में जंगल का वातावरण भयावह प्रतीत होने लगा। इसके पश्चात कुछ समय ऐसा गुज़रा, जैसे गहरी प्रतीक्षा की स्थिति हो। यह प्रतीक्षा न किसी साधु, योगी, अवतार, वली, या मानव की थी, बल्कि किसी शारीरिक दृष्टि से क्रूर प्राणी की थी, जो मेरे मानसिक स्तर पर कदम दर कदम गति कर रहा था। अचानक नाना ताजुद्दीन नागपुरी (र.अ.) की ओर ध्यान आकर्षित हुआ। उनके पैरों की दिशा में एक विशाल शेर धीरे-धीरे ढलान से चढ़ते हुए आ रहा था, अत्यंत शालीनता और शिष्टता के साथ।
शेर नाना ताजुद्दीन नागपुरी (र.अ.) की ओर अपनी आंशिक रूप से खुली आँखों से देख रहा था। कुछ ही समय में वह उनके पैरों के बिल्कुल निकट पहुँच गया। नाना (र.अ.) गहरी निद्रा में, पूरी तरह से अनभिज्ञ थे। शेर अपनी जीभ से उनके तलों को चाटने लगा। कुछ मिनटों बाद उसकी आँखें अत्यधिक स्नेहभाव से बंद हो गईं और उसने अपना सिर भूमि पर रख दिया।
नाना ताजुद्दीन नागपुरी (र.अ.) अभी भी नींद में थे। शेर ने कुछ साहस दिखाकर तलों को चाटना जारी रखा। इस क्रिया से नाना (र.अ.) की आँखें खुली और वह उठकर बैठ गए। शेर के सिर पर हाथ फेरते हुए उन्होंने कहा, 'तू आ गया। अब तेरा स्वास्थ्य पूर्णतः ठीक है, मुझे तुझे स्वस्थ देख अत्यधिक प्रसन्नता हो रही है। अब तू जा सकता है।' शेर ने गहरी आभारभावना के साथ अपनी पूंछ हिलाई और वहां से चला गया।
मैंने इन घटनाओं पर गहन विचार किया। यह बात किसी को ज्ञात नहीं कि शेर पहले कभी उनके पास आया था। यह अनिवार्य रूप से स्वीकार करना पड़ता है कि नाना (र.अ.) और शेर पहले से मानसिक रूप से परिचित थे। परिचय का एक ही तरीका हो सकता है। वह अना की लहरें
(अना) नाना (र.अ.) और शेर के बीच बदलाव का कारण बनती थीं, जो उनकी मुलाकात का कारण बनती थीं। मनीषियों में हृदय की दृष्टि का खुलना
(कशफ) की प्रक्रिया सामान्यत: इसी प्रकार होती है, लेकिन इस
घटना से यह ज्ञात हुआ कि जानवरों में भी हृदय की दृष्टि का खुलना (कशफ) इसी तरह
होता है। हृदय की दृष्टि का खुलना (कशफ) के मामले में इंसान और अन्य प्राणी समान
हैं।
ख्वाजा शम्सुद्दीन अजीमी
कलंदर शऊर
अच्छी है बुरी है, दुनिया (dahr) से शिकायत मत कर।
जो कुछ गुज़र गया, उसे याद मत कर।
तुझे दो-चार सांसों (nafas) की उम्र मिली है,
इन दो-चार सांसों (nafas) की उम्र को व्यर्थ मत कर।
(क़लंदर बाबा औलिया)