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एक व्यक्ति बस्ती छोड़कर जंगल
में चला गया। एक समय, दो (२) समय वह भूखा रहा, यह सोचते हुए कि जब मैं खाना नहीं खाऊँगा तो मुझे कौन खिलाएगा। तीसरे समय
भूख और प्यास के कारण उसकी अवस्था अत्यंत खराब हो गई। दिल में विचार आया कि पानी
पी लिया जाए तो कोई हानि नहीं होगी। पास में एक नहर थी। जब वह नहर के पास पहुँचा,
तो पानी के प्रवाह के साथ एक टोकरी आती हुई दिखाई दी। उत्सुकता
उत्पन्न हुई कि इस टोकरी में क्या है। टोकरी को खोला तो इसमें एक परात थी और उस
परात में बहुत सारा हलवा रखा हुआ था। यह अभिमानी व्यक्ति अत्यंत बेचैनी का
प्रदर्शन करते हुए सारा हलवा खा गया। हलवा खाने और पानी पीने के बाद उसे विचार आया
कि यह हलवा कहाँ से आया। पानी के बहाव के विपरीत नहर के किनारे-किनारे वह चलता
रहा। और अंततः एक गाँव में पहुँचा। वहाँ एक किसान ने बताया कि वह टोकरी सुबह बहुत
सवेरे नंबरदार ने नहर में डाली थी। पता नहीं इसमें क्या था। अभिमानी व्यक्ति
नंबरदार के घर पहुँचा। नंबरदार ने बताया कि गत रात्रि हमारे यहाँ एक फ़क़ीर पधारे
थे। हमारे एक भ्राता गंभीर रोग से ग्रस्त थे, जिनके समस्त
शरीर पर कुष्ठ विकसित हो गया था। उनके शारीरिक अंगों का प्रायः प्रत्येक भाग सड़ने
लगा था, जिससे रक्त एवं मवाद प्रवाहित हो रहा था। फ़क़ीर ने
उपचार के रूप में यह निर्देश दिया कि हलवा पकाकर उसे उष्ण अवस्था में समस्त शरीर
पर लेपित किया जाए और प्रातः काल, अंधकार रहते हुए, उस हलवे को शरीर से अलग कर टोकरी में रखकर जलधारा में प्रवाहित कर दिया
जाए।
ख्वाजा शम्सुद्दीन अजीमी
कलंदर शऊर
अच्छी है बुरी है, दुनिया (dahr) से शिकायत मत कर।
जो कुछ गुज़र गया, उसे याद मत कर।
तुझे दो-चार सांसों (nafas) की उम्र मिली है,
इन दो-चार सांसों (nafas) की उम्र को व्यर्थ मत कर।
(क़लंदर बाबा औलिया)