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क़लंदर चेतना विद्यालय में प्रवेश से पूर्व, मेरे भीतर दो प्रमुख दुर्गुण अत्यधिक प्रबल थे। प्रथम यह कि मेरा मानसिक दृष्टिकोण व्यापारिक था। जब भी मैं किसी से मिलता, उसकी व्यक्तित्व से कोई न कोई अपेक्षा अंकित कर लेता। क़लंदर बाबा ओलिया़ (रह.) की शरण में आने के पश्चात्, सबसे पहले इस मानसिकता पर आघात हुआ। जिस व्यक्ति से जिस अपेक्षा का सूत्रपात किया, वह पूरी नहीं हुई। यह प्रक्रिया इतनी बार पुनरावृत्त हुई कि मित्रों की ओर से निराशा का वातावरण व्याप्त हो गया और अंततः मेरे मस्तिष्क में यह विचार उत्पन्न हुआ कि कोई भी मित्र तब सहायक हो सकता है, जब परमेश्वर की मर्जी हो।
ख्वाजा शम्सुद्दीन अजीमी
कलंदर शऊर
अच्छी है बुरी है, दुनिया (dahr) से शिकायत मत कर।
जो कुछ गुज़र गया, उसे याद मत कर।
तुझे दो-चार सांसों (nafas) की उम्र मिली है,
इन दो-चार सांसों (nafas) की उम्र को व्यर्थ मत कर।
(क़लंदर बाबा औलिया)