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अना की लहरें (Waves of self Ego)


यह सिद्धांत गहरे चिंतन और विश्लेषण से मानसिकता में स्थापित किया जाना चाहिए कि जिस प्रकार विचार हमारे मस्तिष्क में गतिमान होते हैं, उनमें अधिकांश हमारे व्यक्तिगत जीवन से अप्रासंगिक होते हैं। उनका संबंध ऐसी प्राणियों से होता है, जो क़ायनात (ब्रह्मांड) में कहीं कहीं विद्यमान होती हैं, चाहे वह निकट हो या दूर। इन प्राणियों के आस्थाएँ और चित्र हमारे पास लहरों के माध्यम से पहुंचते हैं। जब हम इन चित्रों को अपनी जीवन-व्यवस्था और अनुभवों से जोड़ने का प्रयास करते हैं, तो हजार कोशिश के बावजूद हम उन प्रयासों में सफल नहीं हो पाते। अना की जिन लहरों (Waves of Self-ego) का यहां उल्लेख किया गया है, उन पर कुछ महत्वपूर्ण बातें विचारणीय हैं। वैज्ञानिक प्रकाश को उच्चतम गति से परिभाषित करते हैं, किंतु यह इतनी तीव्र गति नहीं रखता कि वह समय और स्थान के अंतराल को समाप्त कर सके। हालांकि, अना की लहरें अनंतता (Infinitude) में एक साथ सर्वत्र विद्यमान होती हैं, और समय तथा स्थान की सीमाएँ इनके प्रभाव से परे होती हैं। दूसरे शब्दों में, हम यह कह सकते हैं कि इन लहरों के लिए समय और स्थान की कोई सीमा नहीं होती। जबकि प्रकाश की लहरें जिन अंतरालों को संकुचित करती हैं, अना की लहरें उन्हीं अंतरालों को केवल संकुचित करती हैं, बल्कि उन्हें अस्तित्वहीन मानती हैं।

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कलंदर शऊर(Qalandar Shaoor)

ख्वाजा शम्सुद्दीन अजीमी

कलंदर शऊर

 

अच्छी है बुरी है, दुनिया (dahr) से शिकायत मत कर।
जो कुछ गुज़र गया, उसे याद मत कर।
तुझे दो-चार सांसों (nafas) की उम्र मिली है,
इन दो-चार सांसों  (nafas)  की उम्र को व्यर्थ मत कर।

 

(क़लंदर बाबा औलिया)