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रंगों की संख्या ग्यारह हजार है



सार एक है, दिशाएँ विभिन्न हैं। रचनाएँ इस प्रकार उत्पन्न होती हैं कि दिशा अपनी सामग्री को अपने अंदर सुरक्षित करके इस प्रकार सक्रिय करती है कि पदार्थ विभिन्न और निश्चित मात्राओं में परिवर्तित हो जाता है। जब ये निश्चित मात्राएँ आपस में अवशोषित होती हैं तो एक रंग उत्पन्न होता है, और जब एक रंग दूसरे रंग में अवशोषित होता है तो तीसरा रंग उत्पन्न होता है। परिणामस्वरूप अनगिनत रंग उत्पन्न होते हैं और ये अनगिनत रंग ही परमेश्वर की काइनात हैं।

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कलंदर शऊर(Qalandar Shaoor)

ख्वाजा शम्सुद्दीन अजीमी

कलंदर शऊर

 

अच्छी है बुरी है, दुनिया (dahr) से शिकायत मत कर।
जो कुछ गुज़र गया, उसे याद मत कर।
तुझे दो-चार सांसों (nafas) की उम्र मिली है,
इन दो-चार सांसों  (nafas)  की उम्र को व्यर्थ मत कर।

 

(क़लंदर बाबा औलिया)