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सोना खाओ



इसके पश्चात दूसरा प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। रूहानी दृष्टि से देखा कि एक अत्यंत विस्तृत कक्ष है, जिसमें अनेक अलमारियाँ रखी हुई हैं। इन अलमारियों में सोने की ईंटें रखी हुई हैं। यह अवस्था साढ़े तेरह घंटों तक बनी रही कि मैं एक कक्ष में बंद हूँ और वह कक्ष सोने की ईंटों से भरा हुआ है। इस स्थिति में मेरा मस्तिष्क रोटी खाने की ओर प्रवृत्त होता, तो मेरे श्रवणेंद्रिय में एक मायावी ध्वनि गूंजती, "सोना खाओ।" जल पान की इच्छा होती, परंतु वहाँ जल का कोई अस्तित्व नहीं था, तब वही ध्वनि पुनः सुनाई देती, "सोने चाँदी से प्यास बुझाओ।" और जब मैं इस अवस्था से बाहर आया, तो दस रुपये के नोट से भी मानसिक अशुद्धता का अनुभव होने लगा। इसके पश्चात परमेश्वर की ओर से निरंतर ऐसे असंख्य घटनाएँ घटित हुईं, जिनका अस्तित्व में आना तर्कसंगत रूप से असंभव और कठिन प्रतीत होता था। एक बार, दस बार, बीस बार, सौ बार इस प्रकार के अनुभवों के पुनरावृत्त होने से मस्तिष्क में यह पूर्ण विश्वास स्थापित हो गया कि जो परमेश्वर चाहता है, वही होता है। यहाँ यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि रूहानीता केवल शब्दों पर आधारित कोई ज्ञान नहीं है, बल्कि यह एक व्यावहारिक और प्रत्यक्ष अनुभवजन्य ज्ञान है।

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कलंदर शऊर(Qalandar Shaoor)

ख्वाजा शम्सुद्दीन अजीमी

कलंदर शऊर

 

अच्छी है बुरी है, दुनिया (dahr) से शिकायत मत कर।
जो कुछ गुज़र गया, उसे याद मत कर।
तुझे दो-चार सांसों (nafas) की उम्र मिली है,
इन दो-चार सांसों  (nafas)  की उम्र को व्यर्थ मत कर।

 

(क़लंदर बाबा औलिया)