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यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है कि
इस भौतिक संसार (आलम-ए-नासूत) में आने से पहले आत्मा कहाँ स्थित थी। क्योंकि जब हम
"आना" शब्द का प्रयोग करते हैं, तो इसका अर्थ
यह निकलता है कि किसी स्थान पर कोई अस्तित्व या वस्तु पहले से विद्यमान थी। जब यह
तथ्य स्थापित हो जाता है कि किसी वस्तु का अस्तित्व कहीं है, तब यह प्रश्न उठता है कि वह वस्तु किस रूप में और किस आकार में अस्तित्व
में थी। रूप और आकार की चर्चा करते समय, उनका एक विशिष्ट
स्थान पर स्थिति होना अनिवार्य हो जाता है। साथ ही स्थान के निर्धारण के साथ-साथ
समय और स्थान की अवधारणा भी परिकल्पित होती है।
हम पैदा होने से पहले कहाँ थे? इस प्रश्न का सामान्य उत्तर यह है कि हम सभी, मनुष्य
और प्राणी, पैदा होने से पूर्व आलम-ए-अरवाह (आध्यात्मिक
संसार) में स्थित थे। फिर आलम-ए-अरवाह से इस भौतिक संसार (आलम-ए-नासूत) में आकर
स्थित हो गए। तथापि, जब हम आलम-ए-अरवाह की बात करते हैं,
तो यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि यह आलम-ए-अरवाह क्या है? आलम-ए-अरवाह का ज्ञान अनंत और अज्ञेय है, लेकिन परमेश्वर
द्वारा जिन व्यक्तियों को इस ज्ञान की प्राप्ति हुई है, वे
इस अद्वितीय ज्ञान से परिचित होते हैं और इसे अपने शागिर्दों को प्रसारित करते हैं।
ख्वाजा शम्सुद्दीन अजीमी
कलंदर शऊर
अच्छी है बुरी है, दुनिया (dahr) से शिकायत मत कर।
जो कुछ गुज़र गया, उसे याद मत कर।
तुझे दो-चार सांसों (nafas) की उम्र मिली है,
इन दो-चार सांसों (nafas) की उम्र को व्यर्थ मत कर।
(क़लंदर बाबा औलिया)