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मुराक्बा



मुराक्बा का परिभाषा करते हुए कलंदर बाबा औलिया (रह.) ने बताया कि मुराक्बा एक मानसिक एवं आध्यात्मिक प्रक्रिया है, जिसमें मानव संसारिक परिस्थितियों, भौतिक घटनाओं, इच्छाओं और समय-स्थान की सीमाओं से मुक्त होकर एक गहरी ध्यानावस्था में स्थित होता है। ग़ैब (अदृश्य) की दुनिया में प्रवेश, तब तक संभव नहीं है जब तक व्यक्ति समय और स्थान की भौतिक जड़ताओं से मुक्त हो, अर्थात जब तक वह शारीरिक रूप से मानसिक संयम और एकाग्रता में स्थापित हो, वह ग़ैब की वास्तविकता को अनुभव नहीं कर सकता। शारीरिक आवश्यकताओं से मुक्ति का तात्पर्य यह नहीं है कि व्यक्ति मृत्यु के समक्ष हो, बल्कि इसका अर्थ यह है कि वह शारीरिक आवश्यकताओं को गौण कर देता है और उस स्रोत पर ध्यान केन्द्रित करता है, जहां से ये आवश्यकताएँ रूपांतरित होकर ऊर्जा या प्रकाश के रूप में व्यक्त होती हैं।

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कलंदर शऊर(Qalandar Shaoor)

ख्वाजा शम्सुद्दीन अजीमी

कलंदर शऊर

 

अच्छी है बुरी है, दुनिया (dahr) से शिकायत मत कर।
जो कुछ गुज़र गया, उसे याद मत कर।
तुझे दो-चार सांसों (nafas) की उम्र मिली है,
इन दो-चार सांसों  (nafas)  की उम्र को व्यर्थ मत कर।

 

(क़लंदर बाबा औलिया)