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प्रकृति अपने संदेश को पहुँचाने के लिए दिया से दिया जलाती रहती है। ज्ञान की मशाल एक हाथ से दूसरे हाथ में स्थानांतरित होती रहती है। सूफ़ी, वाली, गौस, क़ुतुब, मजीज़ूब, अवतार, क़लंदर, और अब्दाल, ये प्रकृति के वे हाथ हैं जिनमें ज्ञान की मशाल जल रही है। ये शुद्ध आत्माएँ इस ज्ञान से अपनी स्वयं की आत्मा को भी प्रकाशित करती हैं और दूसरों को भी ज्ञान का आभास कराती हैं। केवल इतिहास के पन्नों पर ही नहीं, लोगों के हृदयों पर भी इन महान हस्तियों की कहानियाँ और आँखों देखी घटनाएँ जीवित और संरक्षित हैं। उनके आशीर्वाद से मृतकों को जीवन, रोगियों को चिकित्सा, भूखों को भोजन, निर्धनों को संपत्ति, अभावग्रस्त लोगों को अधिकार, असहाय और असमर्थ लोगों को संतान और संपत्ति के उपहार मिलते रहते हैं।
ख्वाजा शम्सुद्दीन अजीमी
कलंदर शऊर
अच्छी है बुरी है, दुनिया (dahr) से शिकायत मत कर।
जो कुछ गुज़र गया, उसे याद मत कर।
तुझे दो-चार सांसों (nafas) की उम्र मिली है,
इन दो-चार सांसों (nafas) की उम्र को व्यर्थ मत कर।
(क़लंदर बाबा औलिया)