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दो डॉल्फिनें एक सांप जैसी मछली
ईल (EEL) के साथ खेल रही थीं और उसे
पकड़ने के लिए उसका पीछा कर रही थीं। चतुर ईल ने डॉल्फिनों से बचने के लिए
अचानक गोताखोरी की और एक सुरंग में घुसकर छिप गया। अब डॉल्फिनों की सूझबूझ पर
ध्यान दें, उनमें से एक ने एक ऐसी मछली पकड़ ली, जिसका मुँह विषैले डंक से सुसज्जित था, और उसने उस
मछली की पूँछ पकड़कर उसका सिर उस सुरंग में घुसा दिया, जहाँ ईल
छिपा हुआ था। ईल ने उस विषैले मछली को देखा और भय के कारण सुरंग से बाहर
निकलकर भाग गया, जिससे खेल पुनः प्रारंभ हो गया।
हज़रत बाबा ताजुद्दीन नागपुरी
(र.अ.) के पोते और क़लंदरशऊर के संस्थापक क़लंदर बाबा ओलिया (र.अ.) अपनी पुस्तक
"तज़किरा ताजुद्दीन बाबा" में शेर के श्रद्धा से संबंधित एक घटना और उस
घटना की व्यावहारिक व्याख्या करते हुए फरमाते हैं कि:
ख्वाजा शम्सुद्दीन अजीमी
कलंदर शऊर
अच्छी है बुरी है, दुनिया (dahr) से शिकायत मत कर।
जो कुछ गुज़र गया, उसे याद मत कर।
तुझे दो-चार सांसों (nafas) की उम्र मिली है,
इन दो-चार सांसों (nafas) की उम्र को व्यर्थ मत कर।
(क़लंदर बाबा औलिया)