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समाज और विश्वास



मनुष्य जिस सामाजिक संरचना में अपना विकास करता है, वही संरचना उसके विश्वास का आधार बन जाती है। उस विश्वास की गहन समीक्षा करने में उसका मस्तिष्क अक्सर असमर्थ रहता है। इस प्रकार, वह विश्वास सत्य के रूप में स्थापित हो जाता है, जबकि वस्तुतः वह मात्र एक मानसिक भ्रांति होती है। इसका प्रमुख कारण यह है कि मनुष्य अपने वास्तविक स्वरूप को प्रकट करने के बजाय, प्रायः अपने विपरीत रूप को प्रस्तुत करता है।

ऐसी जीवनशैली अनेक जटिलताओं को जन्म देती है। यह जटिलताएँ प्रायः ऐसी होती हैं जिनका समाधान उसके पास उपलब्ध नहीं होता। हर स्थिति में उसे यह भय सताता है कि उसका श्रम निष्फल होगा या उसकी गतिविधियाँ निरर्थक सिद्ध होंगी। कभी-कभी यह मानसिक स्थिति इतनी तीव्र हो जाती है कि मनुष्य यह मानने लगता है कि उसका संपूर्ण जीवन व्यर्थ हो रहा है या गंभीर संकट में है। यह मानसिक अस्थिरता मस्तिष्कीय कोशिकाओं में हो रहे तीव्र क्षरण और असंतुलन का प्रत्यक्ष परिणाम है।

जब मनुष्य का वास्तविक जीवन उस जीवन से भिन्न होता है जिसे वह व्यतीत कर रहा है या जिसे वह प्रस्तुत कर रहा है, तब वह अपने कार्यों से वांछित परिणाम प्राप्त करने की चेष्टा करता है। किंतु मस्तिष्कीय कोशिकाओं के निरंतर क्षरण और परिवर्तनों के कारण उसकी गतिविधियाँ भटकाव का शिकार हो जाती हैं। परिणामस्वरूप, या तो वे निष्फल सिद्ध होती हैं, या हानिकारक प्रभाव उत्पन्न करती हैं, अथवा ऐसा संशय उत्पन्न करती हैं जो उसके निर्णय और आगे बढ़ने की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करता है।

मनुष्य के मस्तिष्क की संरचना उसकी बौद्धिक और मानसिक दशाओं के अधीन होती है। इस संरचना से तात्पर्य मस्तिष्कीय कोशिकाओं के विघटन की तीव्रता, संतुलन, या न्यूनता से है। मस्तिष्कीय कोशिकाओं का न्यूनतम विघटन एक आकस्मिक घटना हो सकती है, परंतु इसका परिणाम संदेह और अनिश्चितता से मुक्त मानसिक स्थिति के रूप में प्रकट होता है।

मस्तिष्क में संदेह और अनिश्चितता का स्तर जितना कम होगा, उतना ही मनुष्य की जीवन यात्रा सफलता और उद्देश्यपूर्ण उपलब्धियों से परिपूर्ण होगी। इसके विपरीत, संदेह और अनिश्चितता की तीव्रता में वृद्धि जीवन के मार्ग में असफलताओं, मानसिक बाधाओं, और नकारात्मक अनुभवों को जन्म देती है। इस प्रकार, मस्तिष्कीय संरचना में संतुलन व्यक्ति की मानसिक स्थिरता और जीवन की गुणवत्ता के लिए केंद्रीय भूमिका निभाता है।Bottom of Form

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कलंदर शऊर(Qalandar Shaoor)

ख्वाजा शम्सुद्दीन अजीमी

कलंदर शऊर

 

अच्छी है बुरी है, दुनिया (dahr) से शिकायत मत कर।
जो कुछ गुज़र गया, उसे याद मत कर।
तुझे दो-चार सांसों (nafas) की उम्र मिली है,
इन दो-चार सांसों  (nafas)  की उम्र को व्यर्थ मत कर।

 

(क़लंदर बाबा औलिया)