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जो भक्त कुलंदर होते हैं, वे समय और स्थान की सीमा से मुक्त हो जाते हैं और समस्त जीव-जंतु उनके
अधीन हो जाते हैं। ब्रह्मांड का हर कण उनके नियंत्रण में होता है। लेकिन परमेश्वर के
ये पवित्र भक्त स्वार्थ, लालच, और
इच्छाओं से परे होते हैं। जब प्राणी उनकी सेवा में कोई निवेदन प्रस्तुत करते हैं,
तो वे उसे सुनते भी हैं और उसका समाधान भी करते हैं। क्योंकि परमेश्वर
ने उन्हें यही कार्य सौंपा है। यही वे पवित्र भक्त हैं, जिनके
बारे में परमेश्वर कहता है:
"मैं अपने
भक्तों से मित्रता करता हूँ और उनके कान, आंख और जीभ बन जाता
हूँ। फिर वे मेरी ओर से बोलते हैं, मेरी ओर से सुनते हैं और
मेरी ओर से चीज़ों को पकड़ते हैं।"
इन अनादि संत भक्तों की
शिक्षाएँ यह हैं कि प्रत्येक भक्त का परमेश्वर के साथ एक मित्रवत संबंध होता है, एक ऐसा संबंध जिसमें वह अपने परमेश्वर से गुप्त संवाद करता है।
ख्वाजा शम्सुद्दीन अजीमी
कलंदर शऊर
अच्छी है बुरी है, दुनिया (dahr) से शिकायत मत कर।
जो कुछ गुज़र गया, उसे याद मत कर।
तुझे दो-चार सांसों (nafas) की उम्र मिली है,
इन दो-चार सांसों (nafas) की उम्र को व्यर्थ मत कर।
(क़लंदर बाबा औलिया)