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अस्तग़ना


गौर और विचार करें तो सोचने और समझने के दो पक्ष निर्धारित होते हैं। विस्तार में जाने के बजाय हम इन दो पक्षों का उल्लेख करेंगे। वे लोग जो बौद्धिक दृष्टि से स्थिर ज़ेह्न रखते हैं, अर्थात् ऐसा ज़ेह्न जिसमें संदेह और शंका की कोई गुंजाइश नहीं, वे कहते हैं कि हमारा यक़ीन है कि हर चीज़, चाहे इस दुनिया में उसकी कोई भी हैसियत हो, छोटी हो या बड़ी, सुख हो या दुःख, सब परमेश्वर की तरफ़ से है। इन लोगों के अनुभव में यह बात आती है कि ब्रह्मांड में जो कुछ भी मौजूद है, जो हो रहा है, जो हो चुका है या भविष्य में होने वाला है, उसका सीधा संबंध परमेश्वर की ज़ात (परमेश्वर का अस्तित्व) से है। अर्थात जिस तरह परमेश्वर के ज़ेह्न में किसी चीज़ का अस्तित्व है, उसी तरह उसका प्रकट होना होता है। दार्शनिक तरज़-ए-फ़िक्र (तरज़-ए-फ़िक्र, विचार की पद्धति) को नज़रअंदाज़ करते हुए हम इस बात को कुछ उदाहरणों में प्रस्तुत करेंगे।

जीवन का प्रत्येक क्रियाकलाप अपनी विशिष्ट स्थिति रखता है। इस स्थिति को अर्थ प्रदान करना वस्तुतः तरज़-ए-फ़िक्र (विचार-पद्धति) में परिवर्तन है। हमारा दृढ़ विश्वास है कि प्रत्येक वस्तु, जिसका अस्तित्व इस संसार में वर्तमान है या भविष्य में होगा, वह किसी न किसी रूप में पूर्व से विद्यमान है। अर्थात, संसार में कोई भी वस्तु तब तक अस्तित्व में नहीं आ सकती जब तक उसका पूर्व में कोई स्वरूप विद्यमान न हो। मनुष्य का जन्म इसलिए संभव है क्योंकि वह जन्म लेने से पहले किसी रूप में विद्यमान था। मनुष्य के जीवन की परिस्थितियाँ, दिन, महीने और वर्षों के क्रमबद्ध अंतराल पूर्व से ही एक चलचित्र के रूप में अंकित हैं। इस चलचित्र को हम ब्रह्मांडीय चलचित्र या "सुरक्षित पट्टिका" (लो महफ़ूज़) कहते हैं।

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कलंदर शऊर(Qalandar Shaoor)

ख्वाजा शम्सुद्दीन अजीमी

कलंदर शऊर

 

अच्छी है बुरी है, दुनिया (dahr) से शिकायत मत कर।
जो कुछ गुज़र गया, उसे याद मत कर।
तुझे दो-चार सांसों (nafas) की उम्र मिली है,
इन दो-चार सांसों  (nafas)  की उम्र को व्यर्थ मत कर।

 

(क़लंदर बाबा औलिया)